1972 में यशवंत सिंह परमार जी जो हिमाचल के तत्कालीन मुख्यमंत्री थे उन्होंने सोचा की ज़ब हमारी जमीन ही नहीं बचेगी तो हमारी संस्कृति व नौनीहालों के भविष्य को कैसे बचाया जा सकता हैं. इसलिए उन्होंने हिमाचल लैंड टैनेंसी एक्ट सेक्शन 118 प्रारूप गठित कर हिमाचल का पहला भू-क़ानून बनाया और इस क़ानून के अंतर्गत वहाँ का मूलनिवास भी स्वतः ही संरक्षित हो गया. यह क़ानून ईतना ठोस हैं की इसको चाहकर भी भविष्य में किसी भी पार्टी की सरकार सत्ता आये वह तोड़ नहीं सकती हैं. क्योंकि इसको सत्ता पक्ष व विपक्ष के आधे आधे सदस्यों का बराबर मत चाहिए ऊपर से इसको अनुसूची 6 में सुरक्षित कर दिया ताकी कोई इस पर भविष्य में छेड़खानी करने की हिम्मत भी ना कर सके.. अब उत्तराखंड की बात को लेकर हम चलते हैं 9 नवम्बर 2000 को उत्तराखंड राज्य अस्तित्व में आया तब से लेकर आजतक यहाँ कोई भी राज्य का अपना पृथक भू-क़ानून किसी भी सरकार ने बनाने की जहमत नहीं समझी.
पहला भूमि सम्बंधित अध्यादेश 2004 में नारायण दत्त तिवारी सरकार लेकर आयी जिसमें कोई भी परिवार 500 वर्गमीटर जमीन ले सकता हैं फिर इसको संसोधित नाम दिया मेजर जनरल बीसी खंडूरी सरकार ने 2007 में, लेकिन इस अध्यादेश में प्रचार तो 250 वर्गमीटर का था पर था प्रति व्यक्ति जिससे एक परिवार के पास 250×5= 1250 वर्गमीटर जमीन जा रही थी. और साथ ही साथ 2003 का अध्यादेश कोई भी कम्पनी बनाकर कितनी भी जमीन हड़प ले उसको भी युही रहने दिया इस पर किसी भी पार्टी व संगठनों ने कोई ध्यान नहीं दिया ना कोई जनआंदोलन होते हुवे हमें दिखाई दिया. इन सब पर हमने ज़ब ध्यान दिया तो 2016 से भू-अध्यादेश अधिनियम अभियान चलाकर लगातार जन जागरण करना प्रारम्भ किया और लोगों के बीच पहली बार भू-क़ानून शब्द की उत्पत्ति कर भू-क़ानून अभियान क्या हैं इसको घर-घर गॉव-गॉव जाकर बताने लगे, इन दो साल में भू-क़ानून को लेकर हमारा अभियान विभिन्न सेमिनारों, गोष्ठीयों, मीटिंग्स के माध्यम से आगे बढ़ रहा था तभी त्रिवेंद्र सरकार ने 12.50 एकड़ भूमि की बाध्यता को भी जड़ से हवा में उड़ा दिया, और तस्तरी में रखकर पुरे उत्तराखंड को बाहरी लोगों को बेचने का खुल्ला ऑफर दे दिया, इस उत्तराखंड विरोधी अध्यादेश को विधानसभा से भी पारित करवार का अधिनियम बना दिया, इस क़ानून के विरोध करने वाला हमने सड़को पर कोई भी व्यक्ति, राजनैतिक पार्टी व तथाकथित संगठन नहीं देखे. जबकि भू-अध्यादेश अधिनियम अभियान लगातार इसका विरोध करने और अधिक शक्ति के साथ सड़क से विधानसभा तक लड़ता रहा.
त्रिवेंद्र सरकार के 2018 को पारित इस क़ानून का भू-क़ानून अभियान लगातार विरोध करते हुए उत्तराखंड के पृथक भू-क़ानून की मांग को राज्यात्मा की आवाज नाम देकर जनजागरण में तीव्र वेग से लग गया.. जिसको लेकर पुरे राज्य की यात्रा की गयी लगभग 2500 किलोमीटर की यात्रा कर राज्य के सभी प्रसिद्ध तीर्थस्थलों सहित सभी छोटे बड़े देवी-देवताओं के श्री चरणों में भू-क़ानून की अर्जियां अर्पित की गयी साथ ही लोगों से मिलकर भू-क़ानून के बारे में नुक्कड़ सभाएँ की गयी. राज्य में चाहे त्रिवेद्र के बाद तीरथ सरकार आयी और फिर धामी सरकार को लगातार अभी तक 23 ज्ञापन सौंप गये.
उसके बाद विधानसभा घेराव सहित 84 दिनों तक लगातार अनशन किया गया जिसके परिणाम स्वरुप सरकार ने पूर्व मुख्यसचिव श्री सुभाष कुमार जी की अध्यक्षता में एक उच्चस्तरीय भू-संसोधन समिति का गठन किया जिसमें तीन रिटायर आईएएस और एक बाहरी सदस्य सहित उस समय के राजस्व सचिव थे. इसके बाद भी भू-क़ानून अभियान लगातार समिति सहित सरकार से समन्वय बनाते रहा जिसके कारण सरकार को भी लगा यह मुद्दा वास्तव में उत्तराखंडवासियों की पीड़ा हैं. आज हमारे अभियान के विमर्श को जन-जन ने आत्मसात कर लिया हैं और बच्चों से लेकर बुजुर्ग तक सभी लोग को अब लगने लगा हैं की यह वास्तव में हमारी अस्मिता की लड़ाई हैं.. आज हमें बड़ी खुशी हो रही हैं की जनमानस सहित सरकार भी हमारे इस विमर्श व मुद्दे पर काम कर रही हैं.
अब सरकार ने बाहरी लोग जो कम्पनी, ट्रस्ट, एनजीओ आदि अन्य बनाकर यहाँ की जमीनों को कोड़ियों के भाव जिलाधिकारी के वहाँ से खरीदते थे उस पर पूर्ण रोक लगा दी हैं. यह हमारी लड़ाई का मुख्य भाग था जो सफल हुआ. अभी लड़ाई लक्ष्य तक पहुंचने तक लड़ी जायेगी जब तक हिमाचल की तर्ज़ पर भू-क़ानून लागू नहीं हो जाता हैं.. हमारा अभियान 02 अक्टूबर 2024 से फिर से 84 दिनों के अनशन को यशवश्वी मुख्यमंत्री धामी जी का अब तक भू-क़ानून के लिए किये गये आदेशों का धन्यवाद करते हुए आगे बढ़ाने के लिए *सरकार छोड़ो सारा काम, भू-क़ानून पर लगाओ ध्यान इस नारे के साथ विचार कर रही हैं…