प्रशासन द्वारा गरीबों को उजाड़ने का फैसला विधि बिरूध्द एवं चुनाव आचार संहिता का उल्लंघन के बिरूध्द जिलाधिकारी को ज्ञापन

आज विभिन्न राजनैतिक दलों ,मजदूर संगठनों तथा सामाजिक संगठनों ने बस्तियों के पुर्नवास किये बिना तथा कई प्रभावितों द्वारा ठोस सबूत पेश किये जाने के बावजूद एकतरफा कार्यवाही का जोरदार विरोध किया तथा जिलाधिकारी / जिला निर्वाचन अधिकारी से कहा है कि यह कार्यवाही चुनाव आचार संहिता का खुला उल्लंघन है साथ न्यायालय के पूर्व आदेशों को जिनमें स्पष्ट किया गया बिना विधिक कार्यवाही अपनाये या फिर पुनर्वास किये यह प्रशासन कि यह कार्यवाही चुनाव आचार संहिता का खुला उल्लंघन तथा कानून का खुलेआम उल्लंघन है क्योंकि वर्तमान में कोई भी कार्यवाही चुनाव आयोग के स्वीकृति के बिना सम्भव नहीं हो सकती है ।
जिलाधिकारी की ओर से ज्ञापन उपजिलाधिकारी मुख्यालय शालिनी नेगी ने लिया उन्होंने प्रतिनिधिमण्डल को आवश्यक कार्यवाही का आश्वासन दिया ।

ज्ञापन मुख्य निर्वाचन आयुक्त भारत ,मुख्य निर्वाचन अधिकारी उत्तराखंड ,मुख्य सचिव ,शहरी विकास मन्त्री तथा एस एस पी ,उपाध्यक्ष एमडीडीए तथा नगर आयुक्त नगरनिगम देहरादून को भी दिया गया ।

ज्ञापन सलग्न

महोदय,

हमारे राज्य में मेहनतकशवर्ग और गरीब परिवारों के हक़ों पर लगातार हमले हो रहे हैं,इसी सन्दर्भ में प्रशासन द्वारा बिना विधिक प्रक्रिया अपनाये बिना प्रभावितों की पुनर्वास की व्यवस्था किये बिना चुनाव आचार संहिता के बीच गरीबों को उजाड़ने के फैसले का जनसंगठन,राजनैतिक दल एवं सामाजिक संगठन घोर विरोध करते हुये अविलंब बस्तियों को ध्वस्तीकरण की प्रक्रिया तत्काल रोकने की मांग करते हैं ।कोर्ट एवं एनजीटी के दिशानिर्देशों की आड़ में यह कार्यवाही गरीब /अनूसूचित जाति की आबादी के साथ की जा रही है ,बड़े लोगों जो अतिक्रमण किये हुऐ हैं उन्हे हर समय बचाया जाता रहा है ऐसा सर्वविदित है ।

महोदय, इस अवसर आपसे निवेदन करना चाहते हैं कि सरकार के वायदे के अनुसार अपना क़ानूनी और संवैधानिक फ़र्ज़ निभा कर लोगों को अपने हक़ दिलाये। न कि कोर्ट के आदेशों का बहाना बनाकर लोगों को बेघर या फिर बेदखल करे या उनकी आजीविका पर हमला करे ।

महोदय,हाल में राष्ट्रीय हरित अधिकरण और उत्तराखंड उच्च न्यायालय से कुछ आदेश आये हैं। इन आदेशों को कारण बताते हुए मलिन बस्ती में रहने वाले लोगों को नगर निगम देहरादून एवं एमडीडीए द्वारा जो नोटिस जारी किये गये उसमें स्पष्ट बस्तियों को उजाड़ने की बात हो रही है। आपके संज्ञान में यह भी तथ्य लाना जरूरी हो गया है कि 2018 में ही मलिन बस्तियों का नियमितीकरण और पुनर्वास के लिए कानून बनाया गया आपकी सरकार के नेताओं ने चुनाव लड़ते समय आश्वासन दिया था कि मलिन बस्तियों को तुरन्त मालिकाना हक़ देने का वायदा किया था ।जन आंदोलन होने के बाद 2018 में सरकार द्वारा कानून लाकर धारा 4 में ही लिख दिया कि तीन साल के अंदर बस्तियों का नियमितीकरण या पुनर्वास होगा । जबकि वह कानून जून 2024 में खत्म होने वाला है। खेद के साथ लिखना पड़ रहा है कि सरकार द्वारा आज तक किसी भी बस्ती में मालिकाना हक़ नहीं मिला है नहीं कोई वैकल्पिक नीति इनके लिऐ बन पायी है।

मान्यवर , सरकार का वायदा हर परिवार को घर मिलेगा और हर बस्ती का नियमितीकरण या पुनर्वास होगा । लेकिन सूचना के अधिकार द्वारा पता चला है कि 2018 और 2022 के बीच आपकी सरकार ने एक भी बैठक नहीं की ।

महोदय , सरकारी विभाग मलिन बस्तियों इन याचिकाओं को ले कर लगातार लापरवाही किये हैं। आज हज़ारों लोगों के घर का सवाल है, लेकिन हरित प्राधिकरण में 1 अप्रैल की सुनवाई में सरकारी विभाग से कोई हाज़िर ही नहीं हुआ। अभी भी इस आदेश के खिलाफ उचित क़ानूनी कदम उठाने पर आपकी सरकार खामोश है ।

महोदय ,अगले माह जून 2024 में 2018 का अधिनियम खत्म हो रहा है। पुनर्वास और नियमितीकरण के लिए कुछ भी काम नहीं किया गया है। जैसे ही यह कानून ख़त्म हो जायेगा, सारी बस्तियों को उजाड़ा जा सकता है, चाहे वे कितनी भी पुरानी क्यों न हो।
महोदय ,आज न्यायालय के आदेशों पर कार्यवाही सिर्फ मज़दूर बस्तियों तक सीमित किया गया है। किसी भी बड़े होटल, सरकारी विभाग या बड़े बड़े लोगों को नोटिस नहीं दिया गया है जबकि इन सबके द्वारा पोश क्षेत्रों तथा नदी नालों में अतिक्रमण हुआ है।

महोदय ,पूर्व में सैकड़ों हस्ताक्षरित ज्ञापन के माध्यम से सरकार को दिये गये हैं ।
हम पुरजोर मांग करते हैं कि :-
(1) चुनाव आचार संहिता मद्देनजर ,बिना विधिक कार्यवाही तथा पुनर्वास किये बिना प्रभावितों को न हटाया जाये।
(2) अपने ही वादों के अनुसार सरकार तुरंत बेदखली की प्रक्रिया पर रोक लगाए। कोई भी बेघर न हो, इसके लिए या तो सरकार अध्यादेश द्वारा क़ानूनी संशोधन करे या कोर्ट के आदेश के खिलाफ उच्चतम न्यायालय में जाये ।
(3) 2018 का अधिनियम में संशोधन कर जब तक नियमितीकरण और पुनर्वास की प्रक्रिया पूरी नहीं होगी , और जब तक मज़दूरों के रहने के लिए स्थायी व्यवस्था नहीं बनती , तब तक बस्तियों को हटाने पर रोक लगे।
(4)दिल्ली सरकार की पुनर्वास नीति को उत्तराखंड में भी लागू किया जाये।
(5)राज्य के शहरों में उचित संख्या के वेंडिंग जोन को घोषित किया जाये। पर्वतीय एवं ग्रामीण क्षेत्रों में वन अधिकार कानून पर अमल युद्धस्तर पर किया जाये । (6)बड़े़ बिल्डरों एवं सरकारी विभागों के अतिक्रमण पर पहले कार्यवाही की जाये।
(7) एलिवेटेड रोड़ के नाम पर रिस्पना तथा विन्दाल नदी ‌बसी बस्तियों को उजाड़ना बन्द हो ।
आशा है कि आपकी सरकार जनहित में उपरोक्त बिन्दुओं पर कार्यवाही करेंगी ।
सीआईटीयू ,एटक, इन्टक,चेतना आन्दोलन ,महिला मंच ,महिला समिति ,एस एफ आई ,उत्तराखंड पीपुल्स फ्रन्ट, एआईएलयू ,इफ्टा
सीपीआईएम ,सीपीआई ,सपा ,आयूपी ,सर्वोदय मण्डल ,नेताजी संघर्ष समिति शामिल थे ।
जिनमें प्रमुख रूप से शंकर गोपाल ,राजेन्द्र पुरोहित ,अनन्त आकाश ,लेखराज ,अशोक शर्मा ,अनिल कुमार, शम्भु प्रसाद ममगाई ,अनुराधा ,नितिन मलेठा ,रविन्द्र नौडियाल ,दिप्ती सिंह सहित बड़ी संख्या में प्रभावित शामिल थे ।
जारीकर्ता

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