देशभर में लोकसभा चुनाव के दो चरण संपन्न हो गए। वहीं, निर्वाचन आयोग की भूमिका पर भी संदेह उठने लगा है। उत्तराखंड में देहरादून महानगर कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष लालचंद शर्मा ने कहा कि खुद चुनाव प्रक्रिया को लेकर चुनाव आयोग नए विवाद को जन्म दे रहा है। उसने प्रथम चरण के मतदान के 11 दिन और दूसरे चरण के पांच दिन बाद तक उन दोनों दौर में हुए मतदान का अंतिम आंकड़ा जारी नहीं किया। नतीजतन, एक अखबार ने अपनी खबर से इस ओर सबका ध्यान खींचा। ऐसे में आयोग की मंशा पर सवाल खड़े हो गए हैं।
लालचंद शर्मा ने कहा कि 2014 तक मतदान खत्म होने के 24 घंटों के अंदर अंतिम आंकड़ा जारी कर दिया जाता था। वहीं, जब ये बात लोगों ने उठाई तो मंगलवार शाम को आयोग ने आंकड़े जारी किए। हद तो ये हो गई कि आयोग ने सिर्फ प्रतिशत में आंकड़ा बताया है, जबकि 2019 तक वह यह भी बताता था कि हर चुनाव क्षेत्र में कुल कितने मतदाता हैं और उनमें से वास्तव में कितने वोट डाले।
उन्होंने कहा कि भले ही चुनाव आयोग ने मंगलवार को अभूतपूर्व देरी के बाद लोकसभा चुनाव के पहले दो चरणों के लिए अंतिम मतदान डेटा जारी किया, लेकिन यह संदेह के घेरे में बना हुआ है। क्योंकि अनंतिम आंकड़ों की तुलना में अंतिम आंकड़ों में वृद्धि होने पर संदेह पैदा होता है। कारण ये है कि 19 अप्रैल और 26 अप्रैल को हुए चरणों के लिए चुनाव आयोग द्वारा जारी आंकड़ों में प्रत्येक निर्वाचन क्षेत्र में मतदान करने के लिए पंजीकृत मतदाताओं या नागरिकों की कुल संख्या शामिल नहीं है। पिछले लोकसभा चुनाव तक इसका आंकड़ा दिया जाता था। उन्होंने कहा कि दूसरे चरण का मतदान खत्म होने के बाद लगभग 61 प्रतिशत मतदान होने की सूचना निर्वाचन आयोग ने दी थी। अब अंतिम आंकड़ों में इसे 66.71 प्रतिशत बताया गया है। ऐसा कैसे हो गया, इसका संज्ञान सुप्रीम कोर्ट को भी लेना चाहिए।
कांग्रेस के देहरादून से पूर्व महानगर अध्यक्ष ने सवाल उठाया है कि क्या इतना अंतर सामान्य है? ये सारा विवाद देश में गहरा रहे अविश्वास के माहौल का संकेत है। मुमकिन है कि देर और आंकड़े देने के तरीके में बदलाव के पीछे कोई दुर्भावना ना हो। मगर यह अवश्य कहा जाएगा कि निर्वाचन आयोग पांच साल पहले की तरह ही सारे आंकड़े शीघ्र एक साथ देकर इस विवाद से बच सकता था। ये बात सचमुच समझ से बाहर है कि अगर पहले 24 घंटों के अंदर अंतिम आंकड़ा बताया जाता था, तो अब 11 दिन क्यों लगे? आयोग अभी भी इस बारे में विश्वसनीय स्पष्टीकरण देकर इस विवाद को खत्म कर सकता है।
उन्होंने कहा कि मंगलवार को जारी किए गए आंकड़े 19 अप्रैल को पहले चरण के मतदान के 11 दिन बाद और 26 अप्रैल को दूसरे चरण के मतदान के चार दिन बाद आए। ऐसे में यह परिणामों में हेरफेर पर गंभीर आशंकाओं का एक कारण हो सकता है। यह पहली बार है कि अंतिम मतदान संख्या जारी करने में इतनी देरी हुई है।
उन्होंने कहा कि पहले भारत का चुनाव आयोग मतदान के तुरंत बाद या 24 घंटों के भीतर अंतिम मतदाता मतदान प्रकाशित करता था। 2019 के चुनाव के दौरान चुनाव आयोग ने 11 अप्रैल को हुए मतदान के दो दिन बाद 13 अप्रैल को पहले चरण के लिए प्रत्येक निर्वाचन क्षेत्र में लिंग-वार मतदान की पूर्ण संख्या जारी की थी।
लालचंद शर्मा ने कहा कि 19 अप्रैल को पहले चरण के मतदान के बाद चुनाव आयोग ने एक प्रेस विज्ञप्ति में कहा था कि उस दिन शाम 7 बजे तक 60% से अधिक मतदान दर्ज किया गया था। अगले दिन समाचार एजेंसी प्रेस ट्रस्ट ऑफ इंडिया ने बताया कि मतदान 65.5% तक पहुंच जाएगा। ऐसा माहौल बनाने के लिए किया गया। रिपोर्ट में किसी स्रोत का हवाला नहीं दिया गया। मंगलवार को चुनाव आयोग के आंकड़ों से पता चला कि यह संख्या 66.14% थी। अब इसमें संदेह क्यों ना किया जाए। उन्होंने कहा कि हार के डर से अब बीजेपी गड़बड़ी कर चुनाव जीतने की कोशिश कर रही है। देश के हर नागरिक को इसे समझना होगा।